Hindi Poem: Poem
सांस, ऊँची लहरों सी उफनती है
दिल, दांत भींचे
दोनों हाथों से
रूह की चादर पकडे
तना पड़ा है
जड़ें चरमराती हैं उसकी
पकड़ ढीली होती लगती है
जिस्म से एक आंधी गुज़र रही है
रूह उड़ जाए न कहीं
इस हामला जहन से, जहाँ में
एक पोएम उतर रही है|
saans, oonchi lehron si ufanti hai
dil, daant bheechein
dono haathon se
ruh ki chadar pakde
tana pada hai
jadein charmarati hain uski
pakad dheeli hoti lagti hai
jism se ek aandhi guzar rahi hai
ruh ud jaaye na kahin
is haamla zehan se, jahan mein
ek poem utar rahi hai.
उफनना: to boil | भींचना: clench | चरमराना: creak | हामला: pregnant, गर्भवती | ज़हन: mind | जहाँ: world
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